न्यूज़

ग़म-ए-हुसैन से भीगी रात: नई आबादी, सोयत कला से निकला ताजिया जुलूस — इमामे हुसैन की याद में डूबा नगर

ग़म-ए-हुसैन से भीगी रात:
नई आबादी, सोयत कला से निकला ताजिया जुलूस — इमामे हुसैन की याद में डूबा नगर
मोहर्रम की 9 तारीख की रात… जब चाँद भी ग़मगीन था और हवाओं में मातम की सरगोशियाँ थीं। नई आबादी, सोयत कला से उठे ताजिया जुलूस ने मानो इतिहास की किसी ज़िंदा तस्वीर को फिर से जी लिया। यह महज़ एक परंपरा नहीं, बल्कि इमामे हुसैन की शहादत को सलाम पेश करने वाली रूहानी यात्रा थी।

 

 

इस जुलूस में शामिल हुजूम कोई साधारण भीड़ नहीं, बल्कि हर चेहरा, हर कदम, हर अश्क इमाम की याद का अक्स था।
“या हुसैन, या सकीना, या अब्बास” की सदाएं हर गली और चौक में गूंज रही थीं। ने अपनी पूरी हुई मन्नतों पर फूल चढ़ाए, बच्चों को तोलकर ताजियों को चढ़ाया गया, मिठाई और फल वितरित किए गए — यह रस्म आस्था से जन्मी और मोहब्बत से निभाई गई। यह जुलूस नगर के प्रमुख मार्गों से गुजरता हुआ सुबह 10 बजे इमामबाड़ा हुआ। पूरे रास्ते में अखाड़ों का प्रदर्शन, ढोल-नगाड़ों की थाप और नारे इमामे हुसैन की याद को जीवंत बनाए रखते रहे। हर जुबां पर सलाम था, हर दिल में सच्ची अकीदत।

नगर के विभिन्न मोहल्लों से उठे ताजिए भी इस मिलन में शामिल होकर फातिहा पढ़ते हुए अपनी-अपन। यह आयोजन सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि इमाम की याद में एकता, इंसानियत और मुहब्बत की मिसाल था।

यह जुलूस एक पैग़ाम था —
कि ज़माना बदल सकता है,
हालात बदल सकते हैं,
लेकिन इमामे हुसैन की मोहब्बत और उनका पैग़ाम आज भी दिलों की रगों में उसी तरह बहता है।

> 〝यह जुलूस एक इबादत था,
यह रात एक एहसास थी,
और यह याद…
इमामे हुसैन की अमर कुर्बानी का जीवन्त प्रतीक〞

सिंगोली नगर के सभी धर्म के भाइयों का सहयोग रहा उसके लिए तहे दिल से शुक्रिया अदा करते हैं और दुआएं करते हैं ऐसा ही नगर का पूरा सहयोग मिलता रहेके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद

पुलिस अधिकारियों एवं प्रशासनिक अमले का विशेष सहयोग रहा। हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी मुस्तैदी से उपस्थित रहकर उन्होंने सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखी, जिससे जुलूस शांतिपूर्वक और भावनात्मक माहौल में संपन्न हो सका। सिंगोली से ख्वाजा हुसैन मेवाती

Related Articles

Back to top button