मन वचन व जीवन में कड़वाहट से घट रहा है प्रेम-आचार्य प्रसन्नचंद्र सागरजी, चातुर्मासिक मंगल धर्म सभा प्रवाहित

मन वचन व जीवन में कड़वाहट से घट रहा है प्रेम-आचार्य प्रसन्नचंद्र सागरजी, चातुर्मासिक मंगल धर्म सभा प्रवाहित
नीमच। संसार में आज चारों तरफ कड़वाहट फैली है। मन वचन और जीवन की कड़वाहट से भाई- भाई और पिता पुत्र में प्रेम घट रहा है। हमारा धर्म ज्ञान जितना बढ़ता है उतनी कटुता समाप्त होती है। इसलिए जीवन में कुछ भी नहीं हो तो धर्म ज्ञान की साधना बढ़ाओ ज्ञान से तीन सिद्धियां मिलेगी पहले ज्ञान तनाव से मुक्त करेगा दूसरा शांतिपूर्ण जीवन मिलेगा और तीसरा प्रज्ञा का जागरण होगा। यह बात श्री जैन श्वेतांबर भीड़ भंजन पार्श्वनाथ मंदिर ट्रस्ट श्री संघ नीमच के तत्वावधान में बंधू बेलडी पूज्य आचार्य श्री जिनचंद्र सागरजी मसा के शिष्य रत्न नूतन आचार्य श्री प्रसन्नचंद्र सागरजी मसा ने कही। वे चातुर्मास के उपलक्ष्य में जाजू बिल्डिंग के समीप स्थित नूतन जैन आराधना भवन में आयोजित धर्मसभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि शांतिपूर्ण जीवन के लिए अच्छा साधन तपस्वी बनना आवश्यक है। साधना संकल्प सिद्धि का महान उपक्रम है। इससे सारे लक्ष्य हासील होते हैं व्यक्ति संकल्प तो करता है, लेकिन सिर्फ धार्मिक स्रोतों की सीमित रह जाते हैं। संकल्प मजबूत होगा तभी ज्ञान की साधना करने का सुफल प्राप्त होगा। शाश्वत नियम है प्रकृति अपना कार्य करती है। कर्मों का फल मिलता ही है।
प्रकृति का जो प्रबंधन व्यवस्था है वह अपना कार्य करती है। वैराग्य मजबूत हो तो दीक्षा ले सकते हैं। चरित्र मजबूत हो तो पाप कर्म के फल भी कम हो जाते हैं। वैराग्य प्रबल है तो चक्रवर्ती सम्राट भी दीक्षा ग्रहण करने से नहीं रुक सकता है। संसार का स्वरूप समझ आ गया तो दीक्षा ले सकते हैं। परमात्मा की दृष्टि से देखें तो वैराग्य समझ में आ सकता है। संसार को परमात्मा की दृष्टि से देखना प्रारंभ करें तो जबरदस्त जीवन में आनंद मिलेगा। आनंद अंतरात्मा से भी जागृत हो जाए तो जीवन में आनंद आ जाता है। व्यक्ति प्रसन्न रहने के लिए विवाह के लिए तो उत्साहित होता है लेकिन दीक्षा के लिए पुरुषार्थ नहीं करता है। सबको अपने पक्ष में ले लेते हैं तो धर्म सरल है। गौतम बुद्ध के धर्म में तर्क बहुत होते हैं। महावीर स्वामी से तर्क करने में वह पराजित हुए इसलिए उन्हें देश से जाना पड़ा और वह यहां से देश छोड़कर चीन जापान तिब्बत थाईलैंड गए और वही धर्म के प्रचार में लग गए थे उन्होंने धर्म को अलग स्वरूप कर दिया था। जो कि धर्म के अनुसार अनुचित है।
जैन धर्म आत्म दर्शन है वह किसी की भी निंदा नहीं करता है सबके साथ रहकर आगे बढ़ता है। जैन धर्म किसी को तोड़ने की बात नहीं करता है। जैन धर्म सभी सभी को सदैव जोड़ने की बात करता है। जैन धर्म अहिंसा का पाठ सीखता है। सपने में भी यदि पाप हो जाए तो जैन धर्म से पाप को नहीं करने देता है। हिंसा करना करवाना भी पाप माना जाता है। मन से सोचो तो भी पाप लगता है। मन वचन काया से पाप को सोचना भी अनुचित होता है। जीवो को मारने की सोचना भी जीव हिंसा कहलाता है। जीवो के प्रति दया नहीं हो तो वह धर्म-धर्म नहीं होता है। निर्दोष आहार का उपयोग करना। हरी सब्जी का और ग्रहण नहीं करना यह सब जैन धर्म के सिद्धांत है। भिक्षुक जीव दया का पालन होना चाहिए। दया का पालन करें वही सच्चा ब्राह्मण होता है। अभिमानी कभी ब्राह्मण नहीं हो सकता है। जन्म से कोई ब्राह्मण नहीं होता है।
श्री संघ अध्यक्ष अनिल नागौरी ने बताया कि धर्मसभा में तपस्वी मुनिराज श्री पावनचंद्र सागरजी मसा एवं पूज्य साध्वीजी श्री चंद्रकला श्रीजी मसा की शिष्या श्री भद्रपूर्णा श्रीजी मसा आदि ठाणा 4 का भी चातुर्मासिक सानिध्य मिला। समाज जनों ने उत्साह के साथ भाग लिया। उपवास, एकासना, बियासना, आयम्बिल, तेला, आदि तपस्या के ठाठ लग रहे है। धर्मसभा में जावद , जीरन, मनासा, नयागांव, जमुनिया, जावी, आदि क्षेत्रों से श्रद्धालु भक्त सहभागी बने। धर्मसभा का संचालन सचिव मनीष कोठारी ने किया।