पीड़ीत मानवता की सेवा के बिना आत्म कल्याण का मार्ग नहीं मिलता -प्रवर्तक श्री विजयमुनिजी म. सा
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पीड़ीत मानवता की सेवा के बिना आत्म कल्याण का मार्ग नहीं मिलता -प्रवर्तक श्री विजयमुनिजी म. सा
नीमच। उत्तराध्ययन सूत्र के माध्यम से महावीर स्वामी ने संसारी आत्माओं को अपने जीवन का मूल्यांकन करने का संदेश दिया उन्होंने कहा कि यदि मानव महान बनना चाहता है तो हिंसा का त्याग करें समयक ज्ञान को प्राप्त करें। जिससे आत्मबोध हो और जो दुर्गुणों को आत्मा को दुर्गति की ओर ले जाने से बचा सके। जीव दया का पालन करते हुए पीडि़त मानवता की सेवा करें इसके बिना आत्म कल्याण नहीं हो सकता।
यह बात जैन दिवाकरीय श्रमण संघीय, पूज्य प्रवर्तक, कविरत्न श्री विजयमुनिजी म. सा. ने कही। वे श्री वर्धमान जैन स्थानकवासी श्रावक संघ के तत्वावधान में गांधी वाटिका के सामने जैन दिवाकर भवन में आयोजित चातुर्मास धर्म सभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि जैन परिभाषा के अनुसार सकाम मरण कहा जाता है। अर्थात सहज शांत भाव तथा सद्गुणों के साथ जो अपने जीवन को व्यतीत कर देता है और अंतिम समय में सद्गुणों का अपने साथ रखता है वही सच्चा महान व्यक्ति बन सकता है।
मनुष्य को मानव तन मिला है। उसके साथ ही धन भी मिला है सज्जन पुरुष इन दोनों का उपयोग अच्छे पुण्य कार्यों के लिए करता है तप जप तथा गुरुजनों की सेवा रोगियों की सेवा, परिवार जनों भाई बंधु की सेवा, जीव दया, गौशाला में सेवा, पीडि़त मानवता की सेवा अर्ध विक्षिप्त महिला पुरुषों की सेवा, अंधे अनाथ प्राणियों की सेवा में अपना ध्यान लगाता है उसका जीवन सफल होता है तभी आत्मा का कल्याण हो सकता है। कर्मों की निर्जरा के लिए आगामी रविवार को हुकमी चंदजी महाराज साहब की पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में जप तप आयोजित किया जाएगा।
तपस्या उपवास के साथ नवकार महामंत्र भक्तामर पाठ वाचन ,शांति जाप एवं तप की आराधना भी हुई। सभी समाजजन उत्साह के साथ भाग लेकर तपस्या के साथ अपने आत्म कल्याण का मार्ग प्राप्त कर रहे हैं। चतुर्विद संघ की उपस्थिति में चतुर्मास काल तपस्या साधना निरंतर प्रवाहित हो रही है। इस अवसर पर विभिन्न धार्मिक तपस्या पूर्ण होने पर सभी ने सामूहिक अनुमोदना की।
धर्म सभा में उपप्रवर्तक श्री चन्द्रेशमुनिजी म. सा, अभिजीतमुनिजी म. सा., अरिहंतमुनिजी म. सा., ठाणा 4 व अरिहंत आराधिका तपस्विनी श्री विजया श्रीजी म. सा. आदि ठाणा का सानिध्य मिला। संत दर्शन कर आशीर्वाद ग्रहण किया। धर्म सभा का संचालन भंवरलाल देशलहरा ने किया।