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डिजिटल विज्ञापन नीति एवं पायरेसी उल्लंघन को लेकर सांसद सुधीर गुप्ता ने लोकसभा में प्रश्न किया Superb News No.1

डिजिटल विज्ञापन नीति एवं पायरेसी उल्लंघन को लेकर सांसद सुधीर गुप्ता ने लोकसभा में प्रश्न किया

मंदसौर। डिजिटल विज्ञापन नीति को लेकर सांसद सुधीर गुप्ता ने लोकसभा में प्रश्न किया। उन्होने सूचना और ओद्यौगिक मंत्रालय से प्रश्न करते हुए कहा कि सरकार ने अपनी विज्ञापन नीति एवं स्कंध, केंद्रीय संचार ब्यूरो (सीबीसी) को सशक्त बनाने के लिए एक डिजिटल विज्ञापन नीति को स्वीकृति दे दी है।

इस नीति को तैयार करने के लक्ष्य और उद्देश्य क्या हैं। यह नीति किस प्रकार से सीबीसी को ओवर द टॉप (ओटीटी) और वीडियो ऑन डिमांड के क्षेत्रों में एजेंसियों और संगठनों को सूचीबद्ध करने के लिए सशक्त बनाएगी और यह सरकार के लिए कैसे लाभकारी होगी। उन्होने कहा कि पायरेसी के कारण फिल्म उद्योग को प्रति वर्ष भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। सरकार ने पायरेसी के विरुद्ध शिकायतें प्राप्त करने और बिचौलियों को डिजिटल प्लेटफॉर्म से पायरेटेड सामग्री को हटाने का निर्देश देने के लिए नोडल अधिकारियों का एक संस्थागत तंत्र स्थापित किया है।  सरकार द्वारा पायरेसी के मुद्दे से निपटने के लिए किए गए किए जा रहे।

प्रश्न के जवाब में सूचना और प्रसारण और युवा कार्यक्रम और खेल मंत्री अनुराग सिंह ठाकुर ने बताया कि सूचना और प्रसारण मंत्रालय के तहत केंद्रीय संचार ब्यूरो (सीबीसी) भारत सरकारकी स्कीमों, नीतियों और कार्यक्रमों के संबंध में सूचना के प्रसार के लिए जागरूकता अभियान चलाता है। ऐसे अभियानों की पहुंच बढ़ाने और नागरिकों को उच्च परिशुद्धता के साथ संदर्भ- विशिष्ट और उपयोगकर्ता-विशिष्ट विज्ञापन देने के लिए डिजिटल विज्ञापन प्लेटफॉर्म की क्षमताओं का लाभ उठाने हेतु सरकार ने एक डिजिटल विज्ञापन नीति, 2023 को अनुमोदित किया है।

जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ विभिन्न डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्मों जैसे ओटीटी प्लेटफॉर्मों, पॉडकास्ट, इंटरनेट वेबसाइट और मोबाइल एप्लिकेशन को पैनलबद्ध आदि करने का प्रावधान है। पायरेसी के उल्लंघन को लेकर उन्होने बताया कि उद्योग के अनुमान के अनुसार, भारत में फिल्म उद्योग को इसकी सांपत्तिक सामग्री की पायरेसी के कारण हर साल लगभग 20,000 करोड़ रु. का नुकसान होता है।

चलचित्र (संशोधन) अधिनियम, 2023 में फिल्म उद्योग को डिजिटल पायरेसी सहित उसकी सामग्री की पायरेसी से बचाने के लिए एक संस्थागत तंत्र का प्रावधान है। चलचित्र अधिनियम, 1952 में अंतर्विष्ट नई धारा 6कख के अनुसार, कोई भी व्यक्ति किसी भी ऐसी फिल्म, जिसे इस अधिनियम के अंतर्गत या उसके तहत बनाए गए नियम के अनुसार लाइसेंस प्रदान नहीं किया गया है, की उल्लंघनकारी प्रति को लाभार्जन हेतु एक प्रदर्शन स्थल पर जनता के सामने प्रदर्शन के लिए उपयोग या उपयोग करने को बढ़ावा नहीं देगा।

चलचित्र फिल्मों के मूल कॉपीराइट धारकों या उनके द्वारा अधिकृत व्यक्तियों और या किसी अन्य व्यक्ति से इंटरनेट पर फिल्मों की पायरेटेड उल्लंघनकारी प्रतियों के प्रदर्शन संबंधी शिकायतें प्राप्त करने और ऐसे लिंक तक पहुंच को अक्षम करने के लिए मध्यस्थों को अधिसूचना जारी करने के संबंध में सूचना और प्रसारण मंत्रालय और केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड में नोडल अधिकारियों का एक सस्थागत तंत्र भी स्थापित किया गया है। किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा शिकायत के मामले में जिसके पास कॉपीराइट नहीं है या कॉपीराइट धारक द्वारा अधिकृत नहीं है, नोडल अधिकारी द्वारा मामला दर मामला के आधार पर सुनवाई हेतु विचार किया जा सकता है

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