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आचरण में सरलता बिना धर्म की प्राप्ति नहीं होती है- विजयमुनिजी Amazing News No1

आचरण में सरलता बिना धर्म की प्राप्ति नहीं होती है- प्रवर्तकश्री विजयमुनिजी म. सा.

नीमच। आचरण में सरलता बिना धर्म की प्राप्ति नहीं होती है- प्रवर्तकश्री विजयमुनिजी म. सा. जीवन के आचरण में सरलता बिना धर्म की प्राप्ति नहीं होती है। महापुरुषों के सानिध्य में अनेक पाप कर्म करने वाले व्यक्ति भी पाप कर्म का त्याग कर धर्म के सरल मार्ग की और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित हुए हैं। पूरे देश में जैन संतों की प्रेरणा से कई जेनेत्तर समाज के लोगों ने भी जैन उपदेशों को जीवन में आत्मसात कर अपनी आत्मा के कल्याण का मार्ग स्वीकार कर लिया है। इससे जीव दया बढ़ी है। और पाप कर्म कम हुआ है।

विजयमुनिजी

आचरण में सरलता यह बात जैन दिवाकरीय श्रमण संघीय, पूज्य प्रवर्तक, कविरत्न श्री विजयमुनिजी म. सा. ने कही। वे श्री वर्धमान जैन स्थानकवासी श्रावक संघ जमुनिया कलां के तत्वावधान में गणेश मंदिर के समीप महावीर भवन में आयोजित धर्मसभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि सम्यक दर्शन को प्राप्त किए बिना आत्मा का कल्याण नहीं हो सकता है। राग द्वेष को जीतने वाले को इंद्र देवता भी नमन करते हैं। इसलिए राग द्वेष को जीतकर शांति के साथ जीवन व्यतीत करना चाहिए तभी आत्मा का कल्याण हो सकता है।

जीवन में आत्मा का कल्याण करना है तो सत्य अहिंसा दया अपरिग्रह के सिद्धांतों को समझना होगा संसार छोड़ने योग्य है। संयम जीवन ग्रहण करने योग्य है आचरण में सरलता इससे हमें समझना होगा। 9 धर्म तत्वों को समझे बिना मोक्ष मार्ग नहीं मिलता है। हम जितने सरल होंगे तभी हमारा कल्याण होगा। आचरण में सरलता जिस प्रकार लकड़ी का स्वभाव हल्का होता है वह पानी पर तैरती है। पत्थर का स्वभाव भारी होता है। वह डूबता है। पुण्य और अच्छे विचार रखेंगे तो ऊपर उठेंगे। पाप कर्म वाले विचार रखेंगे तो हम नीचे की ओर जा सकते हैं।

चंद्रेश मुनि जी महाराज साहब ने कहा कि जिस प्रकार पत्थर पर फसल ओर बीजों की खेती नहीं हो सकती है इसी प्रकार जीवन में यदि पाप के मार्ग पर चले और कठोरता के साथ रहे तो विनम्रता ओर सरलता नहीं आ सकती है और सम्यक दर्शन भी प्राप्त नहीं होता है।जिस प्रकार नरम मिट्टी पर बीजा रोपण करें तो फसल उगाई जा सकती है ठीक उसी प्रकार जीवन में सरलता को आत्मसात करें तो धर्म को प्राप्त कर सकते हैं और आत्म कल्याण का मार्ग प्राप्त कर सकते हैं।

अरिहंत आराधक तपस्वी साध्वी डॉक्टर विजया सुमन श्री जी महाराज साहब ने कहा कि आत्मा का स्वभाव ऊपर उठने का होता है परंतु पाप कर्मों के कारण आत्मा चारों गति में परिभ्रमण कर भटकती रहती है। आत्मा परमात्मा को ढूंढने के लिए प्रयत्न करती रहती है ।परमात्मा को खोजना नहीं खो जाना है तभी हमारी आत्मा का कल्याण हो सकता है। इस अवसर पर माणक चंद बाबूलाल खिंदावत विमल नागोरी सहित सभी समाज जनों ने उत्साह के साथ भाग लिया। धर्म प्रभावना का वितरण लोकेश खिंदावत परिवार की ओर से किया गया। धर्म सभा का संचालन बलवंत नागौरी ने किया।

इस अवसर पर विभिन्न धार्मिक तपस्या पूर्ण होने पर सभी ने सामूहिक अनुमोदना की। धर्म सभा में उपप्रवर्तक श्री चन्द्रेशमुनिजी म. सा, अभिजीतमुनिजी म. सा., अरिहंतमुनिजी म. सा., ठाणा 4 व साध्वी डॉक्टर विजया सुमन श्री जी महाराज साहब का सानिध्य मिला। मंगल धर्मसभा में सैकड़ों समाज जनों ने बड़ी संख्या में उत्साह के साथ भाग लिया और संत दर्शन कर आशीर्वाद ग्रहण किया। प्रभावना का वितरण लोकेश खिंदावत परिवार की ओर से किया गया।

संयम के प्रभाव से श्रावक श्राविकाओं की दुर्गति नहीं होती है। श्राप दे वह साधु सच्चा साधु नहीं होता है। पुण्य कर्मों के परिणाम  फल स्वरुप जीवन की सभी इच्छाएं पूरी हो सकती है।

जीव दया उत्तम भावना मंगल पाठ आशीर्वाद प्रदान करता है। मानव जितना सरल पवित्र होगा तभी धर्म का पुण्य लाभ मिलता है सरल आत्मा में धर्म ठहरता है पत्थर पर पानी नहीं ठहरता है मिट्टी में पानी रुकता है इसलिए हमें मिट्टी की तरह विनम्र और विवेकशील होना चाहिए तभी हमारे जीवन का कल्याण हो सकता है।

हमें सभी जीव जंतुओं के प्रति सरल हृदय दयावान रहना चाहिए। हम मिट्टी की तरह विनम्र और सरल रहेंगे तो हमारे जीवन का कल्याण हो सकता है और यदि हम पत्थर की तरह कठोर रहेंगे तो हमारा कल्याण नहीं हो सकता है। लेकिन जब हम साधना करते हैं तब हमें पत्थर की तरह कठोर रहकर साधना को पूरा करना चाहिए तो हमारा कल्याण हो सकता है। प्रवर्तकश्री विजयमुनिजी म. सा.

धर्म सभा में चंद्रेश मुनि जी महाराज साहब ने कहा कि सरलता और सहज भाव के साथ भावों की विशुद्ध पूर्वक दान  करे तो वही सच्ची भक्ति कहलाती है। दान से धन पवित्र होता है।

सभा में श्रीमती आशा सांभर ने  ने काव्य रचना प्रस्तुत करते हुए कहा कि इस संसार में कर्म का फल के परिणाम स्वरूप मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम और सीता जी को भी संसार के लोगों के झूठे आरोपों का सामना करना पड़ा था।

सत्य से जो सफलता प्राप्त करता है वह सदैव बनी रहती है इसके विपरीत बुरे कर्म से सफलता तो मिल जाती है लेकिन वह अधिक दिनों तक टिकती नहीं है। हर व्यक्ति को सत्य पर विश्वास करना चाहिए क्योंकि सत्य से ही सत्य को आकर्षित किया जा सकता है। दुनिया के प्रत्येक सफल कार्यों में सत्य का महत्वपूर्ण योगदान रहता है। हमें सत्य को सदैव अनुभव करना चाहिए ताकि इससे कभी दूर नहीं हो सके। सत्य के साथ बुराई से दूर रहा जा सकता है। जीवन में यदि एक भी बुरे कर्म को स्थान दिया तो उनके अनेक होने में देर नहीं लगती ।

बुराइयों से दूर रहकर सच्चाई और निष्पक्ष जीवन जीने वाला सदैव सफल होता है। चंद्रेश मुनि जी महाराज साहब ने कहा कि धार्मिक क्षेत्र में सम्यक तत्व का चिंतन करना ही श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक होता है।पांच अंगों के साथ गुरु को नमन करते हैं तो नीच गोत्र का बंधन टूटता है और उच्च गोत्र का पुण्य फल मिलता है। सुपात्र को दान दिए बिना पाप कर्मों की निर्जरा नहीं होती है।

उन्होंने कहा कि भौतिक जीवन में जिस प्रकार आहार जरूरी है ठीक उसी तरह धर्म आध्यात्मिक जीवन में प्रवचन जरूरी है। प्रवर्तक श्री ने कहा कि संबंध कभी तेल और पानी जैसे नहीं दूध और पानी जैसे भूमिका के होना चाहिए। परमात्मा से हमारा संबंध आत्मीयता का होना चाहिए। परमात्मा के करीब जाकर उनके वचनों को सुनकर उनके प्रिय बन सकेंगे तभी परमात्मा सिर्फ अच्छे लगने से नहीं, अपने लगने से काम बनेगा। परमात्मा के लिए हमारे मन में नियर हियर, डियर, फीयर और टियर की भूमिका होना चाहिए।

जैन धर्म के आगम और ग्रंथ प्राचीन संस्कृति है। इनके अध्ययन के बिना इनको समझा नहीं जा सकता है। प्राणी मात्र के हितों की रक्षा के लिए जैन धर्म की संस्कृति तथा संस्कार आर्य सभ्यता को समझने तथा आत्मसात करने के लिए जैन आगमों का पठन चिंतन मनन करना चाहिए क्योंकि जैन आगम में प्राणी मात्र के हित की चिंता तथा उनके अभयोदय हेतु जैन आगम में बहुत कुछ मार्गदर्शन का ज्ञान दिया हुआ है।

सामान्य लोग प्राकृत और संस्कृत भाषा को पढ़कर समझ नहीं पाते हैं इसलिए हिंदी भाषा में जैनागम का सरल संपादित किया गया है। भावी पीढ़ी धर्म आगम के उपदेश के अभिप्रायंयों को पढ़कर समझ कर समझ नहीं पाती है उनके लिए धर्म गुरुओं ने अपने प्रवचनों के माध्यम से आगम संवत जैन संस्कार तथा संस्कृति का प्रचार प्रसार किया है।

जो कि वर्तमान में धर्म साहित्य के रूप में सभी भाषाओं में उपलब्ध है यदि उन गुरुओं के प्रवचनों को भी पढ़ लिया जाए तो जैन संस्कृति संस्कार का स्थायित्व मनुष्य में हो सकता है प्रवचनों के माध्यम से धर्म गुरुओं ने मानवीय संवेदना जीव दया भाव कर अभाव ग्रस्त रोगियों की सेवा चिकित्सा माता-पिता की आजीवन सेवा के गुण मनुष्यों में आ सकते हैं क्योंकि वर्तमान युग को देखते हैं तो स्थान स्थान पर हिंसा अत्याचार दुष्कर्म कई घृणित व्यवहार मानवीय जीवन में उतर गए है।

जिसके कारण मनुष्य पशु से भी बेकार व्यवहार करने लग गया है अतः युवा वर्ग से आहव्वान है कि जैन धर्म आगम ग्रंथ को जिस तरह से भी अध्ययन कर सकते हैं करना चाहिए धर्म गुरुओं के सिद्धांत परख प्रवचन को अवश्य ही प्रतिदिन पठन चिंतन कर जीवन में आत्मसात करना चाहिए साथ ही कुछ आचरण में उतारने का प्रयास करना चाहिए तभी आत्मा का कल्याण होगा। ताकि जीवन का अभ्युदय हो सके और शांति से जीवन जी सके।जिससे परिवार समाज तथा जनता के बीच में सौहार्द का वातावरण उत्पन्न हो सके। एक दूसरे एक दूसरे के सहयोगी बन सके यही मान्यता की मिसाल होती है।

भारत की आर्य भूमि बहुत पवित्र है। इसमें ज्ञान का आगोश और चरित्र की सुगंध लेकर कई महापुरुषों ने कर्म किया है। महापुरुष किसी पंथ के नहीं होते वे तो पूरे संसार के होते हैं उनका जीवन सदैव प्रेरणादाई बना रहता है। महापुरुषों के बताएं उपदेश पर चले तो हमारे जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन आ सकते हैं। यदि नीमच नहीं आते तो बड़ी भूल होती, तुमको कभी भुला नहीं पाएंगे।

कविरत्न श्री विजयमुनिजी म. सा.

यह बात जैन दिवाकरीय श्रमण संघीय, पूज्य प्रवर्तक, कविरत्न श्री विजयमुनिजी म. सा. श्री वर्धमान जैन स्थानकवासी श्रावक संघ के तत्वावधान में गांधी वाटिका के सामने जैन दिवाकर जैन भवन चातुर्मास संपन्न होने के बाद सुबह 10 बजे विहार से पूर्व आयोजित चातुर्मास परिवर्तन धर्म सभा में कही। वे श्री वर्धमान स्थानकवासी श्रावक संघ के तत्वावधान में गांधी वाटिका के सामने जैन दिवाकर भवन में आयोजित पांच माह के चातुर्मास पर आयोजित चातुर्मास परिवर्तन कार्यक्रम की धर्म सभा में बोल रहे थे ।

 

उन्होंने कहा कि चतुरमास में की गई तपस्या और भक्ति जीवन को आनंद देती है। और जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन लाती है यही परिवर्तन जीवन जीने की कला सिखाता हैं। चातुर्मास में विहार के लिए विदाई प्रसन्नता के साथ होनी चाहिए। दुखी मन के साथ नहीं होनी चाहिए। क्योंकि साधु संत महापुरुष महान होते हैं।

चौथमल जी महाराज साहब शाकाहार और जीव दया के परिचायक थे। चौथमल जी महाराज साहब ने झोपड़ी से लेकर महल तक लोगों को प्रेरणा देकर अहिंसा से जोड़ा और जीव दया का भाव फैलाया। उन्होंने अनेकों राजाओं को शाकाहार से जोड़कर संसार को एक अनूठी प्रेरणा प्रदान की थी। आधुनिक युग में वैज्ञानिक भी शाकाहार में विश्वास कर रहे हैं। यह बात वर्षों पहले चौथमल जी महाराज ने सभी देशवासियों को बताई थी जो आज के आधुनिक युग में सही साबित हो रही है।

यह बात जैन दिवाकरीय श्रमण संघीय, पूज्य प्रवर्तक, कविरत्न श्री विजयमुनिजी म. सा. ने कही। वे श्री वर्धमान जैन स्थानकवासी श्रावक संघ के तत्वावधान में नीमच सिटी स्थित श्री वर्धमान जैन दिवाकर भवन पर दिवाकर जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित धर्मसभा में बोल रहे थे। शनिवार को प्रवर्तक विजय मुनि जी महाराज साहब के सानिध्य में नीमच सिटी स्थित दिवाकर भवन में गुरु जैन दिवाकर गुरुदेव श्री चौथमल जी महाराज साहब की जयंती सम्मान समारोह आयोजित किया गया। इस अवसर पर प्रवर्तक मुनि श्री ने कहा कि समाज में सुधार के लिए महंगे और खर्चीली आयोजनों पर नियंत्रण होना चाहिए ताकि समाज में समानता रहे ।

वैवाहिक मांगलिक कार्यक्रम में न्यूनतम 11 वस्तुएं निर्माण करना चाहिए ताकि लोग झूठा नहीं छोड़े। बिगाड़ा नहीं हो। युवा वर्ग में धर्म संस्कार की शिक्षा प्रदान करनी होगी तभी धर्म संस्कृति के साथ समाज की रक्षा हो सकेगी।उप प्रवर्तक श्री चंद्रेश मुनि जी महाराज साहब ने कहा कि दीक्षा लेने वाला मृत्यु से कभी नहीं डरता है। चौथमल जी महाराज साहब जहां- जहां जाते थे वहां लोगों का मेला लग जाता था। चौथमल जी महाराज साहब ने जीव हिंसा, मदिरापान,मांसाहार नहीं करने का संकल्प दिलाकर पूरे देश में क्रांतिकारी परिवर्तन का शंखनाद किया था।

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विजय मुनि जीम.सा. के अमृत प्रवचन आज जमुनिया में
विजय मुनि जी महाराज साहब के अमृत प्रवचन आज ग्राम जमुनिया स्थित गणेश मंदिर के समीप महावीर भवन में मंगलवार को सुबह 9 बजे आयोजित होंगे। सभी धर्म प्रेमी श्रद्धालु भक्त समय पर उपस्थित होकर धर्म ज्ञान का पुण्य लाभ ग्रहण करें

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