Sadhvi Shri Amidarsha Shriji साध्वी श्री अमीदर्शा श्रीजी अंतर मन की जागृति बिना सम्यक दर्शन की प्राप्ति नहीं
नीमच। Sadhvi Shri Amidarsha Shriji साध्वी श्री अमीदर्शा श्रीजी अंतर मन की जागृति बिना सम्यक दर्शन की प्राप्ति नहीं। क्रोध के त्याग और अंतर मन की जागृति के बिना सम्यक दर्शन की प्राप्ति नहीं हो सकती है । मानव जीवन बड़ी मुश्किल से मिलता है । इसमें क्रोध नहीं करना चाहिए और विनम्रता को जीवन में आत्मसात करना चाहिए ।
क्योंकि सरलता ही व्यक्ति को सम्यक दर्शन की प्राप्ति कराती है। प्रभु के प्रति प्रेम अंतरात्मा से जागृत होना चाहिए तभी आत्मा का कल्याण हो सकता है । यह बातसाध्वी श्री अमीदर्शा श्रीजी महाराजसा की शिष्या श्री अमिदर्शा श्रीजी महाराज साहब ने कहीं ।
वे श्री जैन श्वेतांबर भीड़भंजन पार्श्वनाथ मंदिर ट्रस्ट नीमच के तत्वावधान में पुस्तक बाजार स्थित नवीन आराधना भवन में आयोजित धर्म प्रवचन सभा में बोल रही थी। उन्होंने कहा कि जिन शासन मिला है तो हमें गर्व करना चाहिए । संसार के तूच्छ सुखों के कारण हमें सम्यक दर्शन नहीं मिलता है। भौतिक सुख तो हर जन्म में मिलेंगे ।लेकिन परमात्मा की भक्ति का सुख मनुष्य जन्म में ही मिलता है । ऐसे में हमें प्रभु सम्यक दर्शन कैसे प्रदान करेंगे हमें चिंतन करना होगा ।
साध्वी श्री अमीदर्शा श्रीजी संसार में व्यक्ति के पास परिवार, पड़ोसी, मित्र से लड़ने का समय है लेकिन परमात्मा से झगड़ने का समय नहीं है । संसार में लड़ेंगे तो पाप कर्मबंधन बढ़ेंगे लेकिन परमात्मा से लड़ेंगे तो सम्यक दर्शन की प्राप्ति होगी। स्वामी वात्सल्य हो तो हजारों लोग आते हैं लेकिन तपस्या हो तो हजार लोग भी नहीं आते हैं । चिंतन करना होगा कि हम क्या कर रहे हैं ? कहां जा रहे हैं ! क्रोध को अपनाएंगे तो सम्यक दर्शन दूर होगा और नरक जाना तय है ।
साध्वी श्री अमीदर्शा श्रीजी जन्म-मरण का विराम कैसे होगा ! जीव दया का पालन करना चाहिए और अपने बच्चों से भी मारपीट नहीं करना चाहिए । उन्हें भी प्रेम से ही समझाने का प्रयास करना चाहिए तभी हमारा जीवन सफल हो सकता है और हमारी आत्मा का कल्याण हो सकता है। मनुष्य पाप कर्मों की ओर अग्रसर है समय दुर्त गति से बढ़ रहा है । वर्षों से प्रवचन सुन रहे हैं फिर भी घर पहुंच कर सास-बहू में विवाद क्यों होता है यह चिंतनीय है कि हमारे अंदर परिवर्तन क्यों नहीं हो रहा है ? हम प्रवचन तो सुनते हैं लेकिन जीवन में आत्मसात नहीं करते हैं ।
प्रवचन को जीवन में आत्मसात किए बिना आत्मा का कल्याण नहीं हो सकता है। रोहिंग्या चोर ने महावीर के एक शब्द को जीवन में आत्मसात किया और मोक्ष को प्राप्त किया था। महावीर ने जो कहा है वह कभी गलत नहीं होता है ।
महावीर कभी झूठ नहीं बोलते हैं, इसलिए महावीर के उपदेशों को जीवन में आत्मसात कर आत्म कल्याण का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए । एक बूंद पानी में असंख्य जीव होते हैं । संसार में रहकर मजबूरी में गलत पाप कर्म करना पड़ते हैं तो उसका हमें प्रायश्चित कर जीव दया का पालन करना चाहिए ।
महावीर के उपदेश या एक शब्द भी हमारी आत्मा को पवित्र कर सकता है। नवकार के महत्व को समझना होगा हमें नवकार गर्भ से मिला है फिर भी हम नवकार से हमारा कल्याण क्यों नहीं हो रहा हैं । हमने नवकार को सुना है लेकिन माना नहीं है, समझा नहीं है, इसीलिए हमारे अंदर परिवर्तन नहीं हो रहा है । हमें नवकार क्यों स्पर्श नहीं कर रहा है ? हमें चिंतन करना होगा। नवकार के सार को समझना होगा। मानव जीवन में मिला समय बहुत महत्वपूर्ण है ।
समय हमारे हाथ से जा रहा है, इसलिए सदैव पुण्य परमार्थ के लिए धर्म के मार्ग पर चलना चाहिए तभी हमारी आत्मा का कल्याण हो सकता है । हम पारसनाथ की पूजा कर रहे हैं फिर हम कंचन क्यों नहीं बन रहे हैं ? चिंतन का विषय है । मीरा गिरधर-गिरधर पुकारती हुई ब्रजभूमि में गई और कृष्ण को प्राप्त किया और परमात्मा में विलीन हो गई थी ।
हमारे समर्पण में कहीं ना कहीं कमी है, इसीलिए हम परमात्मा की भक्ति को प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं । जीव दया का पालन करते हुए प्रत्येक जीव में परमात्मा के दर्शन करना चाहिए तभी हमारी आत्मा का कल्याण हो सकता है । इस जन्म में ही संकल्प लेकर आत्मा को परमात्मा बनाना है और क्रोध नहीं करना है तभी हमारी आत्मा का कल्याण हो सकता है ।
धार्मिक शिविर में पंजीयन में उत्साह दिखाएं…
साध्वी अमिदर्शा श्रीजी महाराज साहब ने आह्वान किया है कि जैन भवन में बच्चों का एक दिवसीय धार्मिक संस्कार प्रशिक्षण शिविर आयोजित किया जा रहा है। सभी अपने-अपने बच्चों का पंजीयन अवश्य कराए और बच्चों को बचपन से ही धार्मिक संस्कारों से जोड़े। धार्मिक संस्कारों को अपनाएं नहीं तो हमें वृद्ध आश्रम का मुंह देखना पड़ेगा । प्रशिक्षण शिविर में विभिन्न धार्मिक संस्कारों का प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा ।
Sadhvi Shri Amidarsha Shriji Without awakening of inner mind there is no attainment of Samyak Darshan.
Neemuch. Without the renunciation of anger and the awakening of the inner mind, right philosophy cannot be achieved. Human life is hard to come by. There should be no anger in this and humility should be imbibed in life. Because only simplicity helps a person attain the right philosophy.
Love for God should be awakened from the conscience only then the soul can be well-being. This was said by Shri Amidarsha Shriji Maharaj Saheb, a disciple of Sadhvi Shri Amipurna Shriji Maharajsa.
She was speaking in the religious discourse meeting organized at Naveen Aradhana Bhavan located in the book market under the auspices of Shri Jain Shwetambar Bhoodbhanjan Parshvanath Temple Trust, Neemuch. He said that we should be proud of the governance we have got.
Due to the trivial pleasures of the world we do not get proper darshan. Material happiness will be found in every birth, but the happiness of devotion to God is found only in human birth. In such a situation, we will have to think about how God will provide us with proper darshan.
In this world a person has time to fight with family, neighbours, friends but there is no time to fight with God. If you fight in the world, your sinful and karmic bondages will increase, but if you fight with God, you will attain the right philosophy. If Swami is affectionate, thousands of people come, but if there is penance, not even a thousand people come. We have to think about what we are doing? Where are you going! If you adopt anger then right philosophy will go away and going to hell is certain.
How will there be an end to birth and death? One should be kind to living beings and should not beat even his own children. We should also try to explain them with love, only then our life can be successful and our soul can be welfare. Man is moving towards sinful activities and time is moving at a rapid pace.
Even after listening to sermons for years, why does a dispute arise between mother-in-law and daughter-in-law after reaching home? It is a matter of concern as to why change is not happening within us? We listen to sermons but do not assimilate them in life.
There can be no welfare of the soul without assimilating the sermon into life. The Rohingya thief imbibed one of Mahavir’s words in his life and attained salvation. What Mahavir has said is never wrong. Mahavir never lies, hence one should imbibe Mahavir’s teachings in life and pave the way for self-welfare.
There are innumerable living beings in a single drop of water. If we are forced to commit wrong sins while living in this world, then we should atone for them and follow compassion for living beings.
Mahavir’s teachings or even a single word can purify our soul. We have to understand the importance of Navkar, we have received Navkar from the womb, still why are we not getting any benefit from Navkar. We have heard Navkar but have not accepted it, have not understood it, that is why change is not taking place within us. Why is Navkar not touching us? We have to think. The essence of innovation has to be understood. Time is very important in human life.
Time is running out of our hands, hence we should always follow the path of righteousness for the sake of good deeds, only then our soul can be benefited. We are worshiping Parasnath then why are we not becoming Kanchan? It is a matter of contemplation. Meera went to Brajbhoomi calling out ‘Girdhar-Girdhar’ and found Krishna and merged with God.
There is something lacking in our dedication, that is why we are not able to achieve devotion to God. We should see God in every living being by following compassion towards living beings, only then our soul can be well-being. In this birth itself, we have to make a resolution to make our soul God and not get angry, only then our soul can get welfare.,
Show enthusiasm in registering for religious camp…
Sadhvi Amidarsha Shriji Maharaj Saheb has called for a one-day religious rites training camp for children to be organized at Jain Bhawan. Everyone must register their children and involve them in religious rituals right from childhood. Adopt religious rituals otherwise we will have to face old age homes. Training in various religious rites will be provided in the training camp.
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