नीमच

प्रवर्तकश्री विजयमुनिजी म. सा. संयम जीवन से मन को मिलती तृप्ति, बढ़ता आत्मविश्वास Amazing News No.1

 प्रवर्तकश्री विजयमुनिजी म. सा. संयम जीवन से मन को मिलती तृप्ति, बढ़ता आत्मविश्वास

नीमच। प्रवर्तकश्री विजयमुनिजी म. सा. संयम जीवन से मन को मिलती तृप्ति, बढ़ता आत्मविश्वास। संयम जीवन के पालन से मन को तृप्ति और सहारा मिलता है, आत्मविश्वास बढ़ता है, सहनशक्ति बढ़ती है, संयम जीवन निष्काम भाव से होना चाहिए। निष्काम संयम जीवन के द्वारा अचिंत्य फल की प्राप्ति होती है। साधु संत सदैव समाज के सभी वर्गों का कल्याण चाहते हैं।  लेकिन वे इसके बदले में समाज से कुछ नहीं चाहते हैं।

 यह बात जैन दिवाकरीय श्रमण संघीय, पूज्य प्रवर्तक, कविरत्न श्री विजयमुनिजी म. सा. ने कही।

श्री वर्धमान जैन स्थानकवासी श्रावक संघ के तत्वावधान में महु रोड स्थित सुराणा टाइल्स सेनेटरी परिसर के समीप में आयोजित  धर्मसभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि संयम जीवन से मुक्ति मिल सकती है पर संसार का सुख मांगना घाटे का सौदा है।

संयम के प्रभाव से श्रावक श्राविकाओं की दुर्गति नहीं होती है। श्राप दे वह साधु सच्चा साधु नहीं होता है। पुण्य कर्मों के परिणाम  फल स्वरुप जीवन की सभी इच्छाएं पूरी हो सकती है।

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जीव दया उत्तम भावना मंगल पाठ आशीर्वाद प्रदान करता है। मानव जितना सरल पवित्र होगा तभी धर्म का पुण्य लाभ मिलता है सरल आत्मा में धर्म ठहरता है पत्थर पर पानी नहीं ठहरता है मिट्टी में पानी रुकता है इसलिए हमें मिट्टी की तरह विनम्र और विवेकशील होना चाहिए तभी हमारे जीवन का कल्याण हो सकता है।

हमें सभी जीव जंतुओं के प्रति सरल हृदय दयावान रहना चाहिए। हम मिट्टी की तरह विनम्र और सरल रहेंगे तो हमारे जीवन का कल्याण हो सकता है और यदि हम पत्थर की तरह कठोर रहेंगे तो हमारा कल्याण नहीं हो सकता है। लेकिन जब हम साधना करते हैं तब हमें पत्थर की तरह कठोर रहकर साधना को पूरा करना चाहिए तो हमारा कल्याण हो सकता है। प्रवर्तकश्री विजयमुनिजी म. सा.

धर्म सभा में चंद्रेश मुनि जी महाराज साहब ने कहा कि सरलता और सहज भाव के साथ भावों की विशुद्ध पूर्वक दान  करे तो वही सच्ची भक्ति कहलाती है। दान से धन पवित्र होता है।

सभा में श्रीमती आशा सांभर ने  ने काव्य रचना प्रस्तुत करते हुए कहा कि इस संसार में कर्म का फल के परिणाम स्वरूप मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम और सीता जी को भी संसार के लोगों के झूठे आरोपों का सामना करना पड़ा था।

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राम को वनवास तथा सीता माता को अग्नि परीक्षा देना पड़ी थी। श्रीमती रेणु सुराणा ने जब से संयम जीवन लिया धन्य जीवन हुआ काव्य रचना प्रस्तुत की। श्रीमती प्रीति सुराणा ने भी अपनी काव्य रचना प्रस्तुत की। इस अवसर पर अनिल सुराणा एवं सुनील सुराणा ने सभी का आभार व्यक्त किया।

इस अवसर पर इसमें सभी समाज जनों ने उत्साह के साथ भाग लिया।
इस अवसर पर  विभिन्न धार्मिक तपस्या पूर्ण होने पर सभी ने सामूहिक अनुमोदना की।
धर्म सभा में उपप्रवर्तक श्री चन्द्रेशमुनिजी म. सा, अभिजीतमुनिजी म. सा.,  अरिहंतमुनिजी म. सा., ठाणा 4  का सानिध्य मिला।  मंगल धर्मसभा  में सैकड़ों समाज जनों ने बड़ी संख्या में उत्साह के साथ भाग लिया और संत दर्शन कर आशीर्वाद ग्रहण किया

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