नीमच

आचार्य प्रसन्नचंद्र सागरजी ने किया 18000 साधु वंदन के संकल्प का आह्वान, वंदन करने उमड़े धर्मावलंबी

आचार्य प्रसन्नचंद्र सागरजी ने किया 18000 साधु वंदन के संकल्प का आह्वान, वंदन करने उमड़े धर्मावलंबी

नीमच। आचार्य प्रसन्न चंद्र सागर जी महाराज के मुखारविंद से 18000 साधुओं को वंदन करने रविवार को मिडिल स्कूल मैदान के समीप जैन आराधना भवन में हजारों धर्मावलंबियों का जनसेलाब ने आचार्य श्री से 18000 साधुओं के जीवन परिचय के साथ वंदन का श्रवण किया। इस अवसर पर आचार्य श्री ने 18000 साधुओं को वंदन कर उनके उपदेशों को आत्मसात करने के लिए संकल्प करने का आह्वान किया। वंदन कार्यक्रम में मेगा स्क्रीन के माध्यम से 27 गुरु दर्शन कर गुरु वंदना के साथ वंदन किया।

जैन श्वेतांबर भीड़भंजन पार्श्वनाथ मंदिर ट्रस्ट श्री संघ नीमच के तत्वावधान में बंधू बेलडी पूज्य आचार्य श्री जिनचंद्र सागरजी मसा के शिष्य रत्न नूतन आचार्य श्री प्रसन्नचंद्र सागरजी मसा ने चातुर्मास के उपलक्ष्य में मिडिल स्कूल मैदान के समीप पुस्तक स्थित जैन आराधना भवनघ् में आयोजित धर्मसभा में उपस्थित धर्मावलंबियों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि संसार में जब तक चाह और राह एक नहीं होती तब तक कल्याण नहीं हो सकता वर्तमान समय में सभी कल्याण चाहते हैं लेकिन चाहने से कुछ नहीं होता कल्याण के लिए हमें प्रभु के बताएं मार्ग पर चलना पड़ेगा।

इस मार्ग पर जो भी चले हैं उनका कल्याण हुआ है और वह महापुरुष बने हैं। मिथ्यात्व आत्मा सबसे बड़ा दोष है और सम्यक सबसे बड़ा गुण है। सभी संकल्प ले कि कर हमें सम्यक प्राप्त हो।
यह संदेश देते हुए आचार्य प्रसन्न चंद्र सागर जी महाराज ने कई धर्मावलंबियों को 18000 साधुओं के वंदन की विधि समझाई उन्होंने कहा कि छोड़ने जैसा संसार है। संसार गलत है। संयम ही सच्चा मार्ग है। लेने जैसा संयम है। साधु संत ही संसार से मुक्ति दिला सकते हैं।

हम प्रतिदिन किसी ने किसी महापुरुष को याद करते हैं और चाहते हैं कि उनके जैसा व्यक्तित्व कृतित्व हमें प्राप्त हो जाए। पुरुषों ने  ज्ञान और आचरण का जो मार्ग बताया है उसे पर चलने से ही कल्याण होता है। गौतम स्वामी, सुधर्मा स्वामी, जम्मू स्वामी आदि ने इसी मार्ग पर चलकर अपना कल्याण किया है। संसार में जितने भी केवली हुए उन्होंने पहले संयम मिला फिर अंगार बन उसके बाद केवल ज्ञान को प्राप्त हुए हैं। संयम यदि वृक्ष है तो उनका मूल सम्यक ही है। तप संयम और चरित्र का वृक्ष मजबूत बनता है। आचार्य श्री ने बताया कि कृष्ण महाराजा ने 18000 साधुओं को पवित्र भाव से साधु के प्रति अनुराग रखते हुए वंदन किया तो उनके नरक बंधन टूट गए थे। संत को वंदन करना चाहिए क्योंकि संत चलता फिरता कल्पवृक्ष होते हैं। संत का आशीर्वाद हमारे जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकता है। गुरु वंदन में हमें इतना आनंद आना चाहिए कि मन की आंखों से आंसू निकल आए। इस अवसर पर श्रीमती खुशबू मोगरा ने संत चरित्र के उपकरण की अक्षत गहुली बनाई।

श्री संघ अध्यक्ष अनिल नागौरी ने बताया कि धर्मसभा में तपस्वी मुनिराज श्री पावनचंद्र सागरजी मसा एवं पूज्य साध्वीजी, श्री चंद्रकला श्रीजी मसा की शिष्या श्री भद्रपूर्णा श्रीजी मसा आदि ठाणा 4 का भी चातुर्मासिक सानिध्य मिला। समाज जनों ने उत्साह के साथ भाग लिया। उपवास, एकासना, बियासना, आयम्बिल, तेला, आदि तपस्या के ठाठ लग रहे है। धर्मसभा में हजारों श्रद्धालु भक्त सहभागी बने। धर्मसभा का संचालन सचिव मनीष कोठारी ने किया।

Related Articles

Back to top button