नालंदा विश्वविद्यालय ने पूरे विश्व ज्ञान के संस्कार का मार्गदर्शन प्रदान किया था- आचार्य प्रसन्नचंद्र सागरजी
नालंदा विश्वविद्यालय ने पूरे विश्व ज्ञान के संस्कार का मार्गदर्शन प्रदान किया था- आचार्य प्रसन्नचंद्र सागरजी
नीमच। नालंदा विश्वविद्यालय के अनुभवी गुरुजनों द्वारा पूरे विश्व के विद्यार्थियों को संस्कार युक्त ज्ञान प्रदान किया गया था जो आज भी आदर्श प्रेरणादाई प्रसंग है। नालंदा के तत्कालीन राजा द्वारा जैन समाज के साधु- संतों श्रावक श्राविकाओं का राजा के दरबार में सीधे प्रवेश का सम्मान मिलता था। यह यह सम्मान पुण्य कर्मों के कारण मिलता था। उस समय भी जैन समाज जीव दया अहिंसा जीओ और जीने दो के मार्ग पर चलता था इसीलिए पूरे विश्व में इनको सम्मान मिलता था। यह बात श्री जैन श्वेतांबर भीड़ भंजन पार्श्वनाथ मंदिर ट्रस्ट श्री संघ नीमच के तत्वावधान में बंधू बेलडी पूज्य आचार्य श्री जिनचंद्र सागरजी मसा के शिष्य रत्न नूतन आचार्य श्री प्रसन्नचंद्र सागरजी मसा ने कही। वे चातुर्मास के उपलक्ष्य में जाजू बिल्डिंग के समीप पुस्तक बाजार स्थित नुतन जैन आराधना भवन में आयोजित धर्मसभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि जीवन में जीव दया का संकल्प लेना चाहिए। यदि भूल वस किसी जीव की हत्या हो जाए तो क्षमा मांग कर प्रायश्चित करना चाहिए। कभी किसी से पाप कर्म काम हो जाता है। प्राचीन काल में राजा महाराजा के युग में पोषध व्रत करने के लिए अलग से कक्ष स्थापित होते थे। दीक्षा संयम जीवन बिना आत्म कल्याण नहीं होता है। व्यक्ति यदि दीक्षा नहीं ग्रहण कर सके तो कोई बात नहीं ,12 व्रत व पौषध वृत धारी बनकर संयम जीवन का पालन कर सकते हैं। श्री संघ अध्यक्ष अनिल नागौरी ने बताया कि धर्मसभा में तपस्वी मुनिराज श्री पावनचंद्र सागरजी मसा एवं पूज्य साध्वीजी श्री चंद्रकला श्रीजी मसा की शिष्या श्री भद्रपूर्णा श्रीजी मसा आदि ठाणा 4 का भी चातुर्मासिक सानिध्य मिला। समाज जनों ने उत्साह के साथ भाग लिया। उपवास, एकासना, बियासना, आयम्बिल, तेला, आदि तपस्या के ठाठ लग रहे है।