नीमच

सम्यक दर्शन के बिना नहीं होता आत्मा का कल्याण, दिवाकर जैन भवन में प्रवर्तकश्री विजयमुनिजी म. सा ने भक्तों से कहा

सम्यक दर्शन के बिना नहीं होता आत्मा का कल्याण, दिवाकर जैन भवन में प्रवर्तकश्री विजयमुनिजी म. सा ने भक्तों से कहा,

नीमच। सम्यक दर्शन के बिना नहीं होता आत्मा का कल्याण, दिवाकर जैन भवन में प्रवर्तकश्री विजयमुनिजी म. सा ने भक्तों से कहा। महावीर स्वामी के 2550 वे निवार्ण कल्याणक नियमित सामूहिक बेला पर प्रवर्तक विजय मुनि जी महाराज साहब की निश्रा में प्रभु भक्तों द्वारा भावांजलि अर्पण की गई है। सम्यक दर्शन के बिना किसी भी आत्मा का कल्याण नहीं होता है जहां सम्यक दर्शन नहीं है, वहां पर धर्म का पुण्य भी नहीं है।

सम्यक दर्शन ही आत्म कल्याण का माध्यम है। आज हम वैवाहिक मांगलिक सामाजिक कार्यक्रम तथा मकान निर्माण त्योहार पर हजारों लाखों पर खर्च करते हैं और बात जब धर्म की आती है तो हम इसमें खर्च करने से बचते हैं जबकि ऐसा नहीं है कि धर्म में खर्च करना इन्वेस्टमेंट कहलाता है इसका लाभ इस जन्म में मिले या नहीं लेकिन अगले जन्म में अवश्य मिलता है। धर्म के क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों से काफी आगे है ।

यह बात जैन दिवाकरीय श्रमण संघीय, पूज्य प्रवर्तक, कविरत्न श्री विजयमुनिजी म. सा. ने कही। वे श्री वर्धमान जैन स्थानकवासी श्रावक संघ के तत्वावधान में गांधी वाटिका के सामने जैन दिवाकर भवन में आयोजित चातुर्मास धर्म सभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि महावीर स्वामी संपूर्ण ज्ञाता दृष्टा थे

वह लोक तथा अलोक के सकल स्वरूप को जानते हैं और देखते थे इसलिए उन्होंने सकल प्राणी जगत का सही कथन के प्रकट किया। जैसे पृथ्वी वायु अग्नि वनस्पति सभी सजीव है इनका जन्म मरण होता है। इसलिए नरक त्रियंच मानव देव सभी की अपनी अपनी समय सीमा है, उन गतियों को निर्धारित समयानुसार पूर्ण करते हैं।

महावीर स्वामी के निवार्ण महोत्सव पर उत्तराध्ययन सूत्र की अंतिम देशना के 36 वें अध्याय में बताया गया कि मानव को अपने जीवन का महत्व समझ कर उत्तम गुणों से सुशोभित होना चाहिए। मानव यदि निम्न गतियां में से जैसे पशु-पक्षी जगत एवं नरक आदि में नहीं जाना है तो सम्यक धर्म की आराधना करनी पड़ेगी समयक ज्ञान दर्शन चरित्र को जीवन में स्वीकार करने से अधोगति रुक जाती है। जीव उच्च गति को प्राप्त करता है।

ऐसे मनुष्य को धर्म बहुत सरलता से प्राप्त होता है। जिसे जैन शास्त्र में सुलभ बोधी कहा जाता है। राग द्वेष तथा कषाय क्रोध से दुर्गुणों से जितना जीव मुक्त होगा उतना ही वह उत्तम गति को प्राप्त करेगा। महावीर का निर्वाण अमावस की अर्ध रात्रि में हुआ था उनके प्रथम शिष्य गणधर गौतम स्वामी को प्रातः काल केवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ था अर्थात वे सर्वज्ञ बन गए थे। उस समय महावीर के शासन में 14000 मुनि राज तथा 36000 साध्वियों की संपदा थी।

उनके लिए शासक की परम आवश्यकता थी। अर्थात आचार्य संघ की गतिविधियों को अच्छी तरह संचालित करते हैं, इसलिए सुधर्मा स्वामी जी जो पंचम गणधर थे। उनको शासन की बागडोर सौंपी गई। उत्तराध्ययन सूत्र के 268 गाथा में जैन धर्म का सार समाहित है भक्तजनों को सदैव इसका स्मरण कर अपना आत्म कल्याण करना चाहिए तभी जीवन का कल्याण हो सकता है।

साध्वी डॉक्टर विजया सुमन श्री जी महाराज साहब ने कहा कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम 14 वर्ष वनवास पूर्ण करके अयोध्या आए इस प्रसन्नता में दीपक प्रज्वलित किया जाता है श्री कृष्ण द्वारिका से नरकासुर का वध कर कर आए थे जैन दर्शन में एक साथ तीन खुशियां आई।

महावीर स्वामी कर्मों से मुक्त हो मोक्ष पहुंचे, निर्वाण कल्याणक महोत्सव व गौतम स्वामी को केवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ ।सुधर्मा स्वामी को जिन शासन प्रभु महावीर के पाठ पर विराजित किया गया। पाटो उत्सव की खुशी में सभी सहभागी बने थे।
तपस्या उपवास के साथ नवकार महामंत्र भक्तामर पाठ वाचन ,शांति जाप एवं तप की आराधना भी हुई।

इस अवसर पर विभिन्न धार्मिक तपस्या पूर्ण होने पर सभी ने सामूहिक अनुमोदना की।
धर्म सभा में उपप्रवर्तक श्री चन्द्रेशमुनिजी म. सा, अभिजीतमुनिजी म. सा., अरिहंतमुनिजी म. सा., ठाणा 4 व अरिहंत आराधिका तपस्विनी श्री विजया श्रीजी म. सा. आदि ठाणा का सानिध्य मिला। चातुर्मासिक मंगल धर्मसभा में सैकड़ों समाज जनों ने बड़ी संख्या में उत्साह के साथ भाग लिया और संत दर्शन कर आशीर्वाद ग्रहण किया।

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