,सिंदूर खेला की रस्म, के साथ बैसला में पांच दिवसीय दुर्गा पूजा का हुआ समापन

सिंदूर खेला की रस्म, के साथ बैसला में पांच दिवसीय दुर्गा पूजा का हुआ समापन
सिंदूर खेला बंगाल की दुर्गा पूजा से जुड़ी 400 साल पुरानी परंपरा है। विजयादशमी पर विवाहित महिलाएं मां दुर्गा और एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर दांपत्य सुख और पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं।
सिंदूर खेला का नाम सुनते ही आंखों के सामने लाल रंग से सजी महिलाएं, हाथों में थाल और चेहरे पर चमक और स्माइल उतर आता है। दुर्गा पूजा की इस रस्म में मां दुर्गा को सिंदूर अर्पित करने के बाद महिलाएं एक-दूसरे को गालों, माथे और मांग में सिंदूर लगाकर शुभकामनाएं देती हैं। यह परंपरा रंगारंग उत्सव से कम नहीं है। बंगाल की गलियों और दुर्गा पूजा पंडालों में दशमी के दिन यह रस्म त्योहार का सबसे बड़ा आकर्षण है। देवी की विदाई से पहले महिलाएं एक-दूसरे के जीवन में खुशहाली और लंबी उम्र का आशीर्वाद मांग रही होती है। इस साल यह रस्म 2 अक्टूबर यानि कल मनाई जाएगी।
नीमच जिले के रामपुरा के समीप बैसला में निवासरत डॉक्टर मोहन मलिक बंगाली एवं क्षेत्र में निवासरत बंगाली परिवार द्वारा धूमधाम से पश्चिम बंगाल की तर्ज पर पांच दिवसीय दुर्गा पूजा का आयोजन अनवरत जारी है इस दौरान मां दुर्गा की भव्य एवं अलौकिक मूर्तियां का निर्माण कार्य भी पश्चिम बंगाल की मूर्तिकार द्वारा किया जाता है इसके साथ ही दुर्गा पूजा के लिए पुजारी भी बंगाल से बुलाए जाते हैं पांच दिवस की दुर्गा पूजा के दौरान विविध परंपराओं का निर्वहन एवं दुर्गा पूजा का अनूठा संगम देखते ही बनता है दुर्गा पूजा के अंतिम दिन प्रतिमा विसर्जन से पहले सिंदूर खेला की रस्म अदा की जाती है
सिंदूर से खेलती महिलाएं जब ढोल-धाक की थाप पर थिरकती हैं, तो पूरा माहौल ही अलग हो जाता है।
बंगाल का खास स्सम
पूरे भारत में नवरात्र के दौरान कहीं गरबा होता है, तो कहीं जागरण… कहीं विशाल झांकियां निकलती हैं, इन सब में बेसला में आयोजित होने वाली दुर्गा पूजा की यह अनोखी परंपरा सबसे अलग है। यहां नवरात्र का रंग दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। यहां पूजा की शुरुआत षष्ठी से होती है और दशमी तक जारी रहती है। इन दिनों में डॉ मोहन मलिक के निवास पर बड़े-बड़े पंडाल बनते हैं, जहां देवी की भव्य मूर्तियां स्थापित की जाती हैं। पूजा, अर्चना, ढाक की थाप और भोग के साथ पूरा माहौल भक्तिमय रहता है। विजयादशमी के दिन जब मूर्ति विसर्जन की तैयारी होती है, तभी सिंदूर खेला की रस्म शुरू होती है। यह रस्म देवी को बेटी मानकर उन्हें विदा करने से पहले निभाई जाती है।
मान्यता है कि नवरात्र के दिनों में मां दुर्गा अपने मायके आती हैं और दशमी के दिन विदा होती हैं। ठीक उसी तरह जैसे कोई बेटी मायके से ससुराल लौटती है। इसलिए दशमी के दिन महिलाएं मां को सिंदूर चढ़ाती हैं और फिर आपस में एक-दूसरे को लगाकर कहती हैं, “तुम्हारा दांपत्य सुखी रहे और पति की उम्र लंबी हो।”
सिंदूर खेला का इतिहास
इतिहासकारों की मानें तो सिंदूर खेला करीब 400 से 450 साल पुरानी परंपरा है। शुरुआत जमींदारों की दुर्गा पूजा से हुई थी। उन दिनों विवाहित महिलाएं इस रस्म में शामिल होकर देवी से आशीर्वाद मांगती थीं। धीरे-धीरे यह बंगाल के हर कोने में फैल गया और आज यह दुर्गा पूजा का अभिन्न हिस्सा है। पुराने समय में माना जाता था कि सिंदूर खेला में शामिल होने से महिलाओं पर विधवापन का संकट नहीं आता और उनके पति की उम्र लंबी होती है।
कौन निभाता है परंपरा?
सिंदूर खेला मुख्य रूप से विवाहित बंगाली हिंदू महिलाएं करती हैं। यह रस्म उनके लिए बेहद खास होती है क्योंकि यह उनके सुहाग और दांपत्य जीवन से जुड़ी होती है। महिलाएं साड़ी पहनकर, गहनों से सजकर पंडाल में पहुंचती हैं और पूरे विधि-विधान से सिंदूर चढ़ाती हैं। फिर एक-दूसरे के चेहरे पर लाल रंग का यह प्रतीक लगाकर विजयादशमी की शुभकामनाएं देती हैं। हालांकि, आजकल कई जगह अविवाहित और गैर-बंगाली महिलाएं भी इस परंपरा का हिस्सा बनने लगी हैं।
बदलती तस्वीर
पहले सिंदूर खेला सिर्फ घरों और जमींदारों की पूजा तक सीमित था, लेकिन आज यह वैश्विक पहचान बना चुका है। विदेशों में बसे बंगाली समुदाय भी दुर्गा पूजा के दौरान यह रस्म निभाते हैं। सोशल मीडिया और फिल्मी दुनिया ने भी इसे नई पहचान दी है। कई फिल्मों और टीवी शोज में सिंदूर खेला के दृश्य दिखाए गए हैं।
डॉ मोहन मालिक द्वारा आयोजित पांच दिवसीय दुर्गा पूजा के दौरान क्षेत्रवासी मां दुर्गा की विविध पूजा पद्धति से रूबरू होते हैं जिसे देखने के लिए आसपास ग्रामीण क्षेत्र से भारी भीड़ डॉक्टर मोहन मलिक के निवास स्थान पर उमड़ती है