नीमच

मुनिश्री सुप्रभ सागर संस्कारों के प्रकाश हेतु प्राथमिकता

संस्कारों के प्रकाश हेतु प्राथमिकता तय करें – मुनिश्री सुप्रभ सागर

 

सिंगोली। संस्कारों के प्रकाश हेतु प्राथमिकता तय करें – मुनिश्री सुप्रभ सागर। मानव जीवन में बुराइयों का प्रवेश शीघ्र हो जाता है जबकि अच्छाइयाँ लाने के लिए परिश्रम करना पड़ता है क्योंकि बुराइयों के संस्कार अनादि से और गहरे भी है लेकिन अंधेरा कितना ही सघन और पुराना हो, प्रकाश की एक किरण का स्पर्श पाते ही भाग जाता है उसी प्रकार अच्छे संस्कारों के प्रकाश की एक किरण के द्वारा बुराई रूपी सघन और पुराना अंधेरा भी भाग जायेगा।उन अच्छे संस्कारों के प्रकाश के लिए पहले प्राथमिकता तय करने की जरुरत है।

यह बात नगर में विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 7 दिसंबर गुरुवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि इसीलिए आचार्यों ने साधु और श्रावक को कुछ कार्य आवश्यक रूप से करने की सलाह दी है।आचार्य कहते हैं कि जो अवश्य करने योग्य है उसे आवश्यक कहा जाता है। इस आवश्यक शब्द के साथ आनचार्यों ने अपरिहाणि शब्द जोडा है जिसका अर्थ होता है बिना कमी किए।जब जो आवश्यक कहा,जितनी देर करने के लिए कहा,जितनी बार कहा वैसा ही करना आवश्यक अपरिहाणि भावना कही गई है। तीर्थंकर भगवन्तों ने साधु और श्रावक दोनों के लिए पृथ्क-पृथ्क छह आवश्यक कहे है।

देवपूजा, गुरुपास्ति,स्वाध्याय संयम,तप और दान श्रावकों के प्रतिदिन करने योग्य षट् आवश्यक कहे गए।साधुओं के लिए सामायिक, स्तुति,वन्दना,प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान और कायोत्सर्ग छह आवश्यक कहे।श्रावकों के लिए आवश्यक करते समय निराकुल परिणाम रखने के लिए कहा गया है तो साधुओं को उपादेय दृष्टि रखकर आवश्यक कार्य करने हेतु कहा गया क्योंकि कहा भी है नजर हटी कि दुर्घटना घटी।आवश्यक करने का उद्देश्य विषय कषाय की वंचना करना और अशुभोपयोग की निवृत्ति करना।इस अवसर पर सभी समाजजन उपस्थित थे।

Related Articles

Back to top button