श्रीमद्भागवत गीता जयंती के अवसर पर अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव मनाया*

*श्रीमद्भागवत गीता जयंती के अवसर पर अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव मनाया*
शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय रामपुरा :
श्रीमद् भागवत गीता जयंती के शुभ अवसर पर भारतीय संस्कृति ज्ञान परंपरा एवं वैदिक संस्कृति के अनुरूप श्रीमद्भागवत गीता के अध्याय 15 का सामूहिक वाचन किया गया है।

कार्यक्रम का शुभारंभ प्रभारी प्राचार्य डॉ एच.के.तुगनावत जी ,डॉ.अर्चना आर्य आयोजक,डॉ शिल्पा राठौर सह संयोजक एवं ग्रंथपाल रामस्वरूप अहिरवार तथा डॉ. महेश कुमार चांदना की उपस्थिति ने कार्यक्रम को गति दी।
प्रभारी प्राचार्य डॉ. तुगनावत ने अपने उद्बोधन ने भगवान श्री कृष्ण के जीवन जीवन दर्शन पर प्रकाश डाला और बताया कि उल्टे बट वृक्ष के रूप में पुरुषोत्तमयोग वास करते हैं। वृक्ष का बैराग बताता है की आत्मा अविनाशी है और सभी प्राणी हृदय में ईश्वर ज्ञान और विस्मृति का स्रोत है। जिस प्रकार उल्टे बट वृक्ष की जड़े परमात्मा है,तना पत्ती आत्मा है जो प्राणियों के शरीर में वास करती है, जिसे पुरुषोत्तम योग कहते हैं।
इसी तारतम्य में डॉ अर्चना आर्य ने कहां श्रीमद्भागवत गीता के पाठ करने से हमारे ज्ञान अनुशासन शिष्टाचार से शुद्ध भाव का विकास होता है। डॉ शिल्पा राठौर ने कहा कि हमें नित समय नीति एवं विचारों से अभिव्यक्त होना चाहिए। श्री रामस्वरूप जी ने सा स्वर श्लोक ध्वनि वाचन में मुख्य भूमिका रही।
संचालनन प्रो.मठुआ अहिरवार ने किया और कहा है कि श्रीमद्भागवत गीता हमे जीवन, जीने, धैर्य , करुणा दया, कर्मठ लगन शील,न्याय प्रतिबद्धता का पाठ सिख लाता है।
अयं निजः परो वेति:
अहं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम्।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्॥
यह मेरा वह पराया है ऐसी छोटी सोच रखने वाले लोग छोटे हृदय वाले होते हैं। जबकि विशाल हृदय वाले लोग संपूर्ण धरती को एक अपना परिवार मानते हैं।
ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुन संवादे पुरुषोत्तमयोगो नाम पञ्चदशोऽध्यायः ॥
कार्यक्रम में महाविद्याल का समस्त स्टाफ एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे। आभार प्रो.मठुआ अहिरवार ने माना।





