जैन दिवाकर जयंती उत्सव चिकित्सालय में रोगियों को फल एवं गाय को हरा चारा वितरण आज, चौथमल जी महाराज साहब द्वारा संकलित ने ग्रंथ जैन धर्म की गीता- प्रवर्तकश्री विजयमुनिजी म. सा
जैन दिवाकर जयंती उत्सव चिकित्सालय में रोगियों को फल एवं गाय को हरा चारा वितरण आज,
चौथमल जी महाराज साहब द्वारा संकलित ने ग्रंथ जैन धर्म की गीता- प्रवर्तकश्री विजयमुनिजी म. सा
नीमच। चौथमल जी महाराज साहब ने अनेक जैन आगम से अनुसंधान कर जैन धर्म के दर्शन को समग्र तत्वों को एक साथ एक कृति में संकलित किया था और इसे भगवान महावीर का महत्वपूर्ण ग्रंथ की रचना की इसमें 18 अध्याय निहित है। आत्मा से संबंधित जीवन के सारे आचार अनाचार कृतियों का सारगर्भित विवेचन का उल्लेख इसमें है।चौथमल जी महाराज साहब द्वारा संकलित निग्रंथ ग्रंथ जैन धर्म के पवित्र गीता के समान है। यह बात जैन दिवाकरीय श्रमण संघीय, पूज्य प्रवर्तक, कविरत्न श्री विजयमुनिजी म. सा. ने कही। वे श्री वर्धमान जैन स्थानकवासी श्रावक संघ के तत्वावधान में गांधी वाटिका के सामने जैन दिवाकर भवन पर दिवाकर जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित धर्मसभा में बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि मानव जीवन में धर्म का महत्व सर्वोपरि होता है। धर्म से ही आत्मा की उन्नति होती है और उसमें सद्गति प्राप्त होती है, किंतु धर्म से आत्मा की अधोगति होती है। मानव जीवन तभी सफल होता है जब अपने जीवन का मानव सत्कर्म को अपने और सभी प्राणियों के लिए सुखद वातावरण तैयार करें। धर्म शास्त्रों के अनुसार कहा भी गया कि धर्म ही हितेषी होता है। मनुष्य और पशु में अंतर है मानव धर्म प्रवृत्ति का आचरण करता है। और धर्म बिना मानव पशु के समान होता है। अनेक बार देखा जाता है, कि कहीं ना कहीं पशु अपनी कृतियों से मानव को भी आश्चर्यचकित कर देते हैं अर्थात कई जगह मनुष्य की रक्षा करने के लिए पशु भी अपनी प्राणों का बलिदान दे देते हैं और अपने जीवन का समर्पण कर देते हैं ऐसे मनुष्य तथा पशु को देवता भी प्रिय लगते हैं। महावीर स्वामी का दर्शन सर्व प्राणी मात्र की रक्षा के लिए बताया गया है।
उनका जीवन त्याग का जीवन रहा है। दूसरों के जीवन की रक्षा करने वाले मनुष्य देवताओं को भी प्रिय होते हैं। साध्वी डॉक्टर विजय सुमन श्री जी महाराज साहब ने कहा कि धर्म ग्रंथ और शास्त्रों के अनुसार जहां समस्या है। वहां समाधान भी होता है। धर्म शास्त्रों का अध्ययन करने से शांति का मार्ग मिलता है। शांति पाठ जाप का अनुष्ठान सुख शांति फलदाई होता है। ध्यान मुद्रा से तनाव दूर होता है। परेशानियां दूर होती है। ध्यान पूर्वक चिंतन करें तो समस्या का निदान अवश्य मिलता है। शांति जाप करते हैं तो संकट कम हो जाता है। शांति पाठ करते हैं तो यश कीर्ति भी वृद्धि होती है। शरीर भी स्वस्थ रहता है और जीवन में आनंद रहता है। धर्म आराधना करते हैं, तो जब तक जीवित रहते हैं स्वस्थ रहते हैं। सभी जीवो को सुखी करो शांति जिनेश्वर शांति करो सभी जीवो को सुखी करो का स्मरण के साथ शांति पाठ किया गया। और सभी के कल्याण सुख समृद्धि की प्रार्थना की गई शांति पाठ का फल फलदाई होता है। शांति पाठ करने से रोग- शोक आदि व्यादि नहीं होती है। इस अवसर पर शुक्रवार सुबह जैन दिवाकर शांति पाठ का सामूहिक आयोजन किया गया इसमें सभी समाज जनों ने उत्साह के साथ भाग लिया।
रोगियों को फल और गायों को हरी घास वितरण आज
जैन दिवाकर महिला मंडल नीमच छावनी की अध्यक्ष श्रीमती रानी राणा, सचिव सीमा चोपड़ा, कोषाध्यक्ष सुरेखा चंडालिया ने बताया कि गुरु चौथमल जी महाराज साहब जैन दिवाकर के 146 वें जयंती महोत्सव के पावन उपलक्ष्य एवं कार्यक्रम की श्रृंखला में शुक्रवार को सुबह शांति पाठ का जाप, धर्म प्रभावना दिवाकर महिला मंडल की ओर से रही। आज शनिवार 25 नवंबर को शासकीय अस्पताल में प्रातः 9ः बजे फल फ्रूट बिस्किट एवं गायों का हरा चारा वितरण कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। रविवार 26 नवंबर को सुबह 9 बजे जैन दिवाकर का चालीसा पाठ आयोजित किया जाएगा। दो भाग्यशाली विजेताओं के ड्रॉ खोलकर सम्मानित किया जाएगा। ड्रॉ के धर्म लाभार्थी श्रीमती संगीता राजेंद्र जारोली तथा मंजू सावर लाल कांठेड़ परिवार होंगे। दोपहर 1 बजे बच्चों की धार्मिक फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता 11 वर्ष से ऊपर वर्ग की आयोजित की जाएगी। दोपहर 2 बजे हॉस्पिटल में फल वितरण कार्यक्रम भी आयोजित किया जाएगा।
27 नवंबर को सुबह 9 बजे लोका शाह जयंती एवं विदाई समारोह आयोजित किया जाएगा। इस अवसर पर विभिन्न धार्मिक तपस्या पूर्ण होने पर सभी ने सामूहिक अनुमोदना की।
धर्म सभा में उपप्रवर्तक श्री चन्द्रेशमुनिजी म. सा, अभिजीतमुनिजी म. सा. अरिहंतमुनिजी म. सा., ठाणा 4 व अरिहंत आराधिका तपस्विनी श्री विजया श्रीजी म. सा. आदि ठाणा का सानिध्य मिला। चातुर्मासिक मंगल धर्मसभा में सैकड़ों समाज जनों ने बड़ी संख्या में उत्साह के साथ भाग लिया और संत दर्शन कर आशीर्वाद ग्रहण किया। धर्म सभा का संचालन भंवरलाल देशलहरा ने किया।